शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

हमारी माँ-बहनों की अस्मतें
तुम्हारी धोतियों से खुलती है

हमारे बच्चों के गले में
तुम्हारे बच्चे मूतते हैं

हमारे बुजु़र्गों की साँसों में
तुम्हारी जिल्लत जी रही हैं

और
अगर तुम कहते हो कि
तुमने हमें इज़्ज़त से नवाजा है

चलो एक पल को मान भी लें
कि,
यही सच है
तो इस सच की सच्चाई को
मेरी भाषा के तर्कों से तराशने के लिए
कृपया,

मुझे भी दें
आप
सिर्फ और सिर्फ़ एक मौका
आप सब लोगों को इज़्ज़त से नवाजने के लिए

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