सोमवार, 14 नवंबर 2011



जिन्दगी की बाजियों में शह हमारी थी मगर,
वक्त तेरे साथ था सो मेरी मात हो चुकी !


गम के अहसास में,  जब भी सरापा डूबकर
हम जो बैठे बात करने मुफलिसी की दूब पर
शाम ढली तो रौशनी ने यह फरमाया ऊबकर
कल मनाना तुम मंसूबे, रौशनी को ठगने के
आज अभी तो बिछुडो, देखो कितनी रात हो चुकी
वक्त तेरे साथ था सो मेरी मात हो चुकी !


एक तरफ तू, एक तरफ मैं, और दरम्यां जिन्दगी
हम तो ठहरे हैं मगर देख कितनी रवां है जिन्दगी
तेरी तरह पर पास मेरे अब मेरी कहां है जिन्दगी
तू सलामत रहना, जीना, देख दोस्त अपनी तो
हसरतों और उम्मीदों से ही तय हयात हो चुकी
वक्त तेरे साथ था सो मेरी मात हो चुकी !

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