सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

जार के जमाने में रूस में राजनैतिक कैदियों को सजा देने के लिए बर्फ से अटे पडे़ साइबेरिया की जेलों में भेजा जाता था. ये जेंले कुछ वैसी ही थी जैसी अंग्रेजी सरकार के शासन काल में भारत में अंडमान निकोबार की सेलुलर जेलें हुआ करती थी, जिन्हें, राजनैतिक कैदियों को दी जाने वाली विकट सजाओं, असहनीय प्रताडनाओं, भयंकर पीड़ाओं और वहाँ से छुटकर नहीं भाग सकने के कारण ‘काले पानी की सजा’ कहा जाता था।
एक लेखक नोबोकोव को जब उसके लिखे राज्यविरोधी क्रांतिकारी लेखों के कारण सजा देकर के साइबेरिया की जेलों में भेजा जाने लगा तो उसके संपादक मित्र ने विदा लेते हुए उससे कहा-‘क्योंकि वहाँ से तुम जब पत्र लिखोगे तो उसे भेजने से पहले जेल प्रशासन के लोग उसे पढेंगें. इसलिए तुमने अगर तुम्हारे साथ हाने वाली ज्यादतियों को लिख भी दिया तो ये लोग उस पत्र को मुझ तक नहीं पहुंचने देंगे और मैं तुम्हारी मदद के लिए कुछ भी नहीं कर पाऊँगा। वैसे तो तुम राजनैतिक कैदी हो इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि तुम्हारे साथ रियायत बरती जायेगी. इसलिए तुम ऐसा करना कि अगर तुम्हें वहाँ आराम से रखा जाता है तो तुम नीली स्याही से पत्र लिखना और अगर जेल प्रशासन तुम्हें परेशान करें, प्रताडना दें, पीडा पहुंचायें तो तुम लाल स्याही से पत्र लिखना, मैं समझ जाऊंगा और मैं तुम्हारी मदद के लिए कुछ न कुछ जरूर करूंगा’.
नोबोकोव के वहाँ से आने वाले सभी पत्र नीली स्याही से सामान्य बातों की जानकारी देते हुए लिखे होते थे। संपादक ने सोचा वह वहाँ पर खुश है और उसे किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं है.
लेकिन वो जानता था कि राजनैतिक कैदियों के साथ वहाँ किस प्रकार का क्रूर व्यवहार किया जाता है. अतः उसने चिन्ता करते हुए नोबोकोव को लिखा-‘क्या बात है मित्र ! तुम ठीक तो हो.’जवाब मैं नोबोकोव का पत्र आया- ‘याद करने के लिए शुक्रिया दोस्त ! मैं यहाँ ठीक हूं. मुझे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं है. और अगर है तो बस इतनी सी है कि यहाँ पत्र लिखने के लिए लाल स्याही नहीं मिलती है।’
तो जनाब ! मैं भी नोबोकोव हूं और लिख रहा हूं कि यहाँ ‘भी’ पत्र लिखने के लिए लाल स्याही नहीं मिलती है

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