सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

इस समय
व्यवस्था के विरोध में होना
अपनी ही टांग को अपने ही हाथ से काटना था
इसलिए वह व्यक्ति इंकलाब जिन्दाबाद के नारे के साथ उठा
और वापिस अपनी ही देह की कोठरी में गिर गया
और जानने लगा कि यही जिन्दा रहने की जरूरत है
और वह जरूरी सामान बन गया है
इस तमाशे के लिए
इसलिए अपने ही हित में स्थानांतरित होना चाहता है
आप इसे अकेला छोड दें
मैं जानता हूँ, अब यह कुछ देर रोना चाहता है


मैं सडक के बीच का हिस्सा बनकर
फुटपाथ के दर्द को अच्छी तरह से महसूस करना चाहता था
मगर वे राजपथ के राही थे
जो जिन्दा थे और शर्मिन्दा थे

मुझे मालूम है संभावनायें हिंसक हैं
मगर जिंदा रहने के लिए
जब हिंसा एक जरूरत बन जाये
तो तुम एक प्लेट आत्महत्या खा लेना
तुम्हारी जूठन से
तब जिन्दगी निकल कर के भागेगी
तब शायद यह ऑख जागेगी ओर मैं कह दूंगा,
यार चुप रहो बहुत से काम हैं
बहुत से नाम हैं
जो जुबां पर अगर आ भी जाये भूल से
तो हमें सोचना पडेगा कि हम किससे मरना पसंद करेंगे
तलवार से या त्रिशूल से

वही साधारण आदमी
तुम्हारे पक्ष में गवाही देते वक्त
सिर्फ एक ही बात में असाधारण था
कि कल सभा में अपनी बात
सबसे ज्यादा असरदार तरीके से उसी एक व्यक्ति ने रखी थी
जिसने सारे वार्तालाप के दौरान अपने मुँह से एक भी शब्द नहीं कहा

इससे पहले कि तुम्हारे वक्त की व्याकरण
मेरे समय के शब्दों को आत्महत्या के लिए उत्साहित करें
में आऊँगा यह सच बताने
कि तुम जिनके खिलाफ खडे हो
अपनी सारी आदतों के कद में
तुम उनसे भी दो हाथ बडे हो
भाई, अजीब बेवकूफी है ?
यहाँ सस्ती शायरी को लोकगीतों की तरह गाने वाला जाहिल,
गंवार, तो घोषित शायर सूफी है


मैं आत्महत्या के सबसे सरल विकल्प की तरफ बढा

और सांध्यकालीन आखबार का तीसरा पृष्ठ ओढकर के सो गया

सब कुछ प्रदर्शन था या बनावटी
तुम्हारे अरण्य रोदन के कार्यक्रम से
बबूल की एक शाख तक नहीं कटी
तुमने कहा क्रान्ति हमने कहा हो ली
देख लो लोगों ने, दिमाग के बाजार में
इंकलाब जिन्दाबाद की अनगिनत दुकानें खोल ली


वे मेरी आस्था को मजबूत करना चाहते हैं

इसलिए मुझे मेरे स्थान से च्यूत करना चाहते हैं
और मैं चीखना चाहता हूँ
अपनी पूरी ताकत से
ताकि कोई मेरी आवाज को अपने हक में इस्तेमाल करे
एक गवाही की तरह में फैल सकूँ

जहां एक कलम और स्याही की तरह तुम थे
वहां में काबिज था ,अपने होने के दम पर
ताकि कह सकूँ कि श्रीमान आप न आयें में शर्मिन्दा हूँ
बस माफ करें
यही क्या कम है कि मैं अपनी जगह पर जिन्दा हूँ

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