शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

मेरी आस्थाओं के कत्ल के मुकदमे की सुनवाई
जिस जगह हो रही थी
वहां एक कौम
अपने इतिहास के हाथों
लहुलुहान अपनी ही किस्मत को रो रही थी

और में चुप था
क्योंकि वहाँ पर सन्नाटा था, ख़ामोशी थी
और अंधेरा बडा ही घुप्प था

और वो आत्महत्या के नवीन संस्करण थे
उनकी आँखों में सपने थे
मगर,उनकी बातों में सेल्फास था
तभी तो
वह वक्तव्य
जो उन्होंने मरते हुए किसानों के पक्ष में दिया था
बहुत ही खास था

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