शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

अगर अफ़सोस की परिधि में
सम्बन्धों की हताहत देह पर
तुम्हारी भावुकता का दर्प
मेरे लिए,
एक अधिकार समझ कर रो सकता है
तो मैं,
सबके सामने
इस एक सच को स्वीकार लेता हूँ
कि इस दुनिया में
रिश्तों के नाम पर
कुछ भी हो सकता है

फिर भी
अगर तुम जानना चाहो
तो जान लो
कि जिस समय तुम्हारे घर का
हर एक कोना
तुम्हारे लग्न-मंडप की रौशनी में
नहाया था
उसी समय,
मैंने
अपने घर के अँधेरों से जूझती
एकमात्र दीपक की लौ को
अपनी काँपती हथेलियों से
सहेजा था, बचाया था

और,
जो यह मेरा कर्म था
अगर तुम्हारी निगाह में सार्वजनिक शर्म था

तो मैं मान लेता हूं कि,
मैं बुज़दिल था
क्यों कि
मुझे
बचा कर रखनी थी अपनी आवाज़
उस आदमी के लए
जिसके
भीतर के भय को
अपने पक्ष में
एक दिन,
मेरे सच का प्रयोग करना है
तुम आज इसीलिए ज़िन्दा हो
कि मुझे,
तुम्हारे लिए
एक दिन तुम्हारे हिस्से की मौत मरना है

इससे पहले
कि तुम्हारे हमदर्द
मुझे दूसरा एकलव्य बनाकर
अँगूठे की जगह मेरी जुबान काट लें
न मैं उनके अत्याचार भूलना चाहता हूँ
न ही
मैं,
तुमसे,
तुम्हारे धर्म और जाति का दर्शन सीखना चाहता हूँ
में बस एक बार,
अपने ही पक्ष में
अपनी पूरी ताकत से चीखना चाहता हूँ

जिससे
आवाज में ही सही मेरा आक्रोश,
मेरे भीतर से बाहर फैले
और
तुम्हारी संवेदनशून्य भावनाओं से
उनका सारा खोखलापन ले ले

तुम कैसी हो
यहाँ सब ठीक है
भूख है, गरीबी है, तन्हाई है, उदासी है
आँखें बेचैन है, प्यासी है

यहाँ तो सब ठीक है,
बस,
तुम कैसी हो !

यहाँ सब ठीक है
दर्द है, अलम है, रंजोगम है, पीड़ा है, प्रताड़ना है
बाक़ी
बची अगर तुम में,
फिर भी कुछ चाहना है

तो वायदे के मुताबिक़ अपनी घोषित दुश्मनी निभाना
और
अपने 'चतुर्थी-कर्म' के लिए
मेरे शब्दों की पाकीज़गी में ही नहा कर जाना

ताकि,
मैं भी तो देखूं कि
दर्द की गहराइयों में
खामोशियों के राग कैसे जगते हैं
और
तुम्हारे दोशीजा पाँवों के निशाँ
मेरी संवेदना की पीठ पर
कैसे लगते हैं

मजबूरी, वफ़ा, वादे , सपने, झूठ, फरेब और कल्पनाये
मेरे सामने तुमने कितने सारे विकल्प रखे हैं
में तुम्हें,
तुम्हारी दृष्टि को
सराहता हूँ
मगर आप इन सब को बख्शें
और मुझे भी
मैं, सिर्फ जीना चाहता हूँ
और अब अकेले जीना
तुम्हारे न होने के ग़म
और
मेरे होने के अफ़सोस को
अब, हर रोज़
ज़िन्दगी की सच्चाइयों में टुकड़ा-टुकड़ा कर के खो सकता है
इसीलिए
में
आज सबके सामने
इस एक सच को स्वीकार कर रहा हूँ
कि इस दुनिया में
रिश्तों के नाम पर
कभी भी,
कहीं भी,
कुछ भी हो सकता है !

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